Saturday, August 11, 2012

बाबा दयाराम

दूर-दूर तक कर्णनगरी के रूप में विख्यात करनाल शहर की धरा महान संतों की तपोभूमि भी रह चुकी है। यहां समय-समय पर विभिन्न संप्रदायों के संतों की रहमत से धर्मस्थल बने हैं। इसका प्रमाण यहां बने अनेक धार्मिक स्थल प्रस्तुत करते हैं। करनाल में स्थित श्रीकृष्ण प्रणामी मंदिर का परिसर भी संतों की रहमत से महका है। यह धार्मिक स्थल उन साधु-संतों की हमेशा याद दिलाता है जिनकी यहां रहमत हुई। करनाल के मॉडल टाउन में स्थित यह मंदिर परमहंस बाबा दयाराम साहेब धाम नाम से भी जाना जाता है। परमहंस बाबा दयाराम श्रीकृष्ण प्रणामी धर्म के अनुयायी थे।
बाबा दयाराम साहेब दया और वात्सल्य की साक्षात् प्रतिमूर्ति थे। उनका जन्म पाकिस्तान में कबीरवाला नामक स्थान पर पंडित कन्हैयालाल व राधाबाई के घर में हुआ था। पंद्रह वर्ष की अवस्था तक बाबा दयाराम ने वेद-वेदांत, श्रीमद्भागवत, रामायण व श्रीमद्भगवत गीता सहित अनेक धर्मग्रंथों का अध्ययन कर लिया था। बहुमुखी प्रतिभा के धनी बाबा दयाराम को बचपन से ही संतजनों के साथ-साथ परिजन भी बाबा कहते थे। बाबा दयाराम ने ब्रह्म-दर्शन के लिए तीन साल तक ऋषिकेश जाकर घोर तपस्या की थी। उन्होंने उसी दौरान काशी, मथुरा, गया, प्रयाग, रामेश्वरम् व द्वारकापुरी की यात्रा करते हुए मल्काहांस (पाकिस्तान) के परम तपस्वी संत दरबारा सिंह से तारतम दीक्षा ली थी। अपने गुरु के प्रति समर्पित बाबा दयाराम प्रेम, भक्ति, सेवा एवं व्यवहार कुशलता के कारण वहां के जनमानस में बहुत चर्चित थे। उन्होंने महामति प्राणनाथ प्रणीत बीतक तथा तारतम वाणी का गहन अध्ययन किया था। अत: उनके मुखारविंद से ब्रह्मज्ञान का प्रकाश दूर-दूर तक फैलने लगा। संत, विद्वान और शोधकर्ता बाबा दयाराम से शिक्षा-दीक्षा लेने पहुंचते थे जिन्हें वे पूर्णब्रह्म का ज्ञान देकर प्रेमलक्षणा भक्ति अपनाने की प्रेरणा देकर पापनाशक एवं मोक्षप्रद तारतम मंत्र दीक्षा प्रदान करते थे। तब से उनके अनेक अनुयायी हैं और उनकी संख्या अब बढ़ती जा रही है। उनके अनुयायी अब विदेशों में भी हैं। यही कारण है कि विशेष अनुष्ठानों के अवसर पर करनाल स्थित श्रीकृष्ण प्रणामी मंदिर में विदशों से भी श्रद्धालु पूजा-पाठ करने आते हैं। वर्तमान में श्रीकृष्ण प्रणामी मंदिर में गद्दी पर विराजमान स्वामी जगतराज महाराज का कहना है कि विदेशों में रहने वाले बाबा दयाराम के भक्त घर में संतान पैदा होने या अन्य किसी विशेष अवसर पर यहां पूजा-अर्चना करने अवश्य पहुंचते हैं। उनका यह भी कहना है कि यहां सभी धर्मो के लोग एकसाथ आराधना करते हैं। इसी कारण इस मंदिर को सर्वधर्मस्थल भी माना जाता है।
बाबा दयाराम जात-पात, रंग-वर्ण, वर्ग-संप्रदाय और धार्मिक कट्टरता से परे रहकर प्राणियों के कल्याण के कार्य करते थे। वे महामति प्राणनाथ की दिव्यवाणी का संदेश सुख शीतल करूं संसार को सर्वव्यापक रूप प्रदान कर शरण में आए सभी लोगों की अभिलाषाओं को पूरा करने के लिए भगवत भक्ति का अनुगमन करने के लिए प्रेरित करते थे। उनके जीवन से अनेक दिव्य अध्यात्मिक चमत्कारिक घटनाएं जुड़ी हुई हैं। परमात्मा से मिलन की राह दिखाने वाले व अध्यात्म पथ के राही परम तपस्वी बाबा दयाराम ने सौ वर्ष की आयु में मल्काहांस (पाकिस्तान) में वर्ष 1828 के माघ मास में जीवित समाधि ले ली थी। उनके उत्तराधिकारी संत गुलाबदास ने बाबा दयाराम की स्मृति में मेला आयोजन के साथ-साथ भंडारा-उत्सव करने की परंपरा कायम की थी जिसका निर्वाह आज भी करनाल में उनके नाम से स्थापित श्रीकृष्ण प्रणामी मंदिर में परंपरागत ढंग से किया जाता है। अपने भक्तों की मनोकामना पूरी करने वाले संत दयाराम का स्मृति महोत्सव हर साल मार्च महीने में मनाया जाता है। इस बार वर्तमान संत श्रीश्री 108 जगतराज महाराज के दिशा निर्देशन में उनके 184वें स्मृति महोत्सव का भव्य आयोजन किया गया था। इस अवसर पर हरियाणा के अलावा पंजाब से भी असंख्य श्रद्धालुओं ने शिरकत की। स्वामी जगतराज महाराज श्रीकृष्ण प्रणामी मंदिर की गद्दी पर 13वें संत हैं। वर्तमान में इस मंदिर में श्रद्धालुओं व समाजसेवकों के सहयोग से अनाथ बच्चों को शिक्षा-दीक्षा दी जाती है। यहां अध्ययनरत बच्चों का कहना है कि उन्हें यहां सुशिक्षा के साथ-साथ आत्मिक शांति भी मिलती है। श्रीकृष्ण प्रणामी मंदिर के परिसर में स्थित श्रीकृष्ण-राधा मंदिर में परम पावन गुरुवाणी श्रीमत् तारतम सागर की सदैव पूजा होती है।
अपने भक्तों के दुख हरकर उनकी मनोकामनाएं पूरी करने वाले परमहंस बाबा दयाराम साहेब ने समस्त विश्व में श्रीकृष्ण की भक्ति के साथ-साथ तुम सेवा से पाओगे पार के सिद्धांत को साकार करते हुए असंख्य लोगों की जो सेवा की थी उसी का पुण्य प्रताप है कि आज भी वे अवतारी देवों की तरह श्रद्धा और विश्वास से पूजे जाते हैं। उनकी याद अन्य संतों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बनी हुई है।


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