Monday, April 29, 2013

"चरित्र" रूपी सम्पदा

मनुष्य के लिए सबसे ज्यादा मूल्यवान उसका"चरित्र" है ।
चाहे वह स्त्री हो या पुरुष दोनो के
लिए चरित्र की रक्षा करना प्रथम कर्तव्य है ।
परन्तु आज का दुर्भाग्य है कि आज , वही व्यक्ति ज्यादा धनी है , जो अपने चरित्र को , ईमान को बेचकर खा रहा है ।
जो लूटकर , चोरी कर अथवा कैसे भी अनैतिक रूप से धन कमा रहा है ।
जो अपने आँतरिक स्थायी व बहुमूल्य "चरित्र" रूपी सम्पदा को बेचकर , बाहरी अस्थाई और नाशवान धन एकत्रित कर संसार मे कथित "धनाढ्य" कहलाता है ।
जो चरित्र से गिर गया उसका संपूर्ण विकास बाधित हो जाता है । उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो नकारात्मक अर्थ मे खुल जाती है , जिससे वह अपने खिलाफ ही फैसले लेता है और आजीवन दुःख पाता रहता है ।
उसके सकारात्मक दिशा मे सोचने की , मनन करने की एवं कार्य करने की क्षमता का ह्रास हो जाता है ।
इसलिए तुम अपने चरित्र की , ईमान की रक्षा करो। यह तुम्हारी रक्षा करेगा ।
यदि चरित्र व ईमान के पालन की परीक्षा मे उत्तीर्ण हो गये तो भीतर और बाहर दोनो ओर से समृद्धी ही है , विकास ही है ।

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