राष्ट्रीय चेतना और आध्यात्मिक जागरण के प्रतीक पुरुष युगनायक स्वामी विवेकानंद का ब्रजभूमि से गहरा लगाव था। अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस और मां शारदा की तरह ही राधाकृष्ण की लीलाभूमि वृंदावन में अपने अल्प जीवनकाल में स्वामी विवेकानंद का आगमन हुआ।
इस भूमि में उनके अपने आध्यात्मिक अनुभव रहे, जिन्हें उनके जीवन के अनछुए पहलुओं के रूप में देखा जाता है। ब्रज संस्कृति शोध संस्थान के सचिव लक्ष्मीनारायण तिवारी कहते हैं कि रामकृष्ण परमहंस, मां शारदा और स्वामी विवेकानंद जैसी विभूतियों का वृंदावन आगमन उनके ब्रज के प्रति लगाव को दर्शाता है। प्राप्त पत्रों में स्वामीजी के वृंदावन और राधाकुंड आगमन की जानकारी मिलती है।
रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम के सचिव स्वामी सुप्रकाशानंद बताते हैं कि उत्तर भारत के तीर्थों की यात्रा के दौरान स्वामी विवेकानंद सन 1888 के अगस्त माह में वृंदावन आए और मां शारदा के निवास स्थान कालाबाबू कुंज में ठहरे थे। इस प्रवास के दौरान उन्होंने राधाकृष्ण की भक्ति का चिंतन किया और इसके आनंद में डूबे रहे।
बताया जाता है कि स्वामी विवेकानंद ने 1888 में 12 से 20 अगस्त तक वृंदावन में रहकर भगवद्लीला का गहनतम परिचय प्राप्त किया। यहां से वह राधा कुंड और गोवर्धन के लिए प्रस्थान कर गए। अपने स्थापना काल से अब तक मठ स्वामीजी द्वारा प्रतिपादित रोगी और दरिद्र सेवा के प्रति नारायण सेवा के भाव सिद्धांतों को आत्मसात किए हुए है।
आध्यात्मिक साधना भूमि रही कालाबाबू कुंज
कालांतर में कालाबाबू कुंज भले ही मां शारदा के निवास स्थान के रूप में जानी जाती है लेकिन यह स्वामी विवेकानंद की आध्यात्मिक साधना भूमि भी रही है। वर्तमान में कालाबाबू कुंज को रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम द्वारा संग्रहालय का रूप दे दिया गया है। इसमें स्वामी रामकृष्ण परमहंस, मां शारदा और स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़े सचित्र वर्णन देखने को मिलते हैं। जिसका अध्ययन करने के लिए युवा आज भी कालाबाबू कुंज में आते हैं।
जब अपने मित्र को लिखा पत्र
जब स्वामी विवेकानंद अपने आध्यात्मिक प्रवास के दौरान वृंदावन पधारे। तब यहां रहने के दौरान उन्होंने काशी के रहने वाले अपने प्रिय मित्र एवं संस्कृत के परम विद्वान प्रमदादास को 12 अगस्त, 1888 में पत्र लिखा। जिसमें वृंदावन में कालाबाबू कुंज में ठहरने एवं इसके बाद राधाकुंड गोवर्धन जाने की भी इच्छा जताई।
इस भूमि में उनके अपने आध्यात्मिक अनुभव रहे, जिन्हें उनके जीवन के अनछुए पहलुओं के रूप में देखा जाता है। ब्रज संस्कृति शोध संस्थान के सचिव लक्ष्मीनारायण तिवारी कहते हैं कि रामकृष्ण परमहंस, मां शारदा और स्वामी विवेकानंद जैसी विभूतियों का वृंदावन आगमन उनके ब्रज के प्रति लगाव को दर्शाता है। प्राप्त पत्रों में स्वामीजी के वृंदावन और राधाकुंड आगमन की जानकारी मिलती है।
रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम के सचिव स्वामी सुप्रकाशानंद बताते हैं कि उत्तर भारत के तीर्थों की यात्रा के दौरान स्वामी विवेकानंद सन 1888 के अगस्त माह में वृंदावन आए और मां शारदा के निवास स्थान कालाबाबू कुंज में ठहरे थे। इस प्रवास के दौरान उन्होंने राधाकृष्ण की भक्ति का चिंतन किया और इसके आनंद में डूबे रहे।
बताया जाता है कि स्वामी विवेकानंद ने 1888 में 12 से 20 अगस्त तक वृंदावन में रहकर भगवद्लीला का गहनतम परिचय प्राप्त किया। यहां से वह राधा कुंड और गोवर्धन के लिए प्रस्थान कर गए। अपने स्थापना काल से अब तक मठ स्वामीजी द्वारा प्रतिपादित रोगी और दरिद्र सेवा के प्रति नारायण सेवा के भाव सिद्धांतों को आत्मसात किए हुए है।
आध्यात्मिक साधना भूमि रही कालाबाबू कुंज
कालांतर में कालाबाबू कुंज भले ही मां शारदा के निवास स्थान के रूप में जानी जाती है लेकिन यह स्वामी विवेकानंद की आध्यात्मिक साधना भूमि भी रही है। वर्तमान में कालाबाबू कुंज को रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम द्वारा संग्रहालय का रूप दे दिया गया है। इसमें स्वामी रामकृष्ण परमहंस, मां शारदा और स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़े सचित्र वर्णन देखने को मिलते हैं। जिसका अध्ययन करने के लिए युवा आज भी कालाबाबू कुंज में आते हैं।
जब अपने मित्र को लिखा पत्र
जब स्वामी विवेकानंद अपने आध्यात्मिक प्रवास के दौरान वृंदावन पधारे। तब यहां रहने के दौरान उन्होंने काशी के रहने वाले अपने प्रिय मित्र एवं संस्कृत के परम विद्वान प्रमदादास को 12 अगस्त, 1888 में पत्र लिखा। जिसमें वृंदावन में कालाबाबू कुंज में ठहरने एवं इसके बाद राधाकुंड गोवर्धन जाने की भी इच्छा जताई।
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