जीवन विचारों का प्रतिफलन है। यह जैसा बोया वैसा पाया के सिद्धांत पर
चलता है। विचार ही हमारे मित्र हैं और वही शत्रु भी। इसलिए विचारों को
परखिए। चिंतन-मनन कीजिए। उसके बाद सिर्फ उन्हीं विचारों को ग्रहण कीजिए, जो
उपयुक्त हों। एक बात अक्सर कही जाती है कि खर्चे कम करो। कहीं ऐसा न हो कि
खर्चे कम करते-करते आमदनी ही कम हो जाए।
आपकी सोच का ही परिणाम है आपका संसार। आप अगर यह सोचते हैं कि खर्चे
बढ़ें, तो खर्चे तभी बढ़ेंगे, जब आमदनी बढ़ेगी और खर्चे कम करने की बात आप
तब सोचेंगे, जब आमदनी कम होगी। कहीं ऐसा न हो कि खर्च कम करने का विचार
आपको कड़ी मेहनत करने से विमुख कर दे।
हिंदू धर्म में जितने भी देवी-देवता हमें दर्शाए जाते हैं, वे सब के सब
धन-धान्य, जेवर-आभूषणों से सुशोभित होते हैं। गणेश जी के सामने फलों और
मिष्ठान के ढेर लगे होते हैं। समृद्ध होना कोई पाप नहीं है। यह गलत धारणा
है कि समृद्धि केवल गलत तरीकों से ही आती है।
समृद्धि से पहले समृद्धि का विचार आता है। समृद्धि होने से पहले आपको
खुद अपने में विश्वास करना पड़ता है कि मैं समृद्धि के लिए सक्षम हूं।
परंतु लोग उल्टा विचार करते हैं। सो विचारों को
श्रेष्ठ लक्ष्य दीजिए। श्रीमद्भगवद्गीता के सबसे अंतिम श्लोक में भगवान
वेदव्यास जी लिखते हैं यत्र योगेश्वर: कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धर:। तत्र
श्रीर्विजयो भूतिध्र्रुवा नीतिर्मतिर्मम।। अर्थात जहां-जहां श्रीकृष्ण
अर्थात ज्ञान और अर्जुन अर्थात् कर्म है, वहां श्री है, विजय है तथा अचल
नीति है। क्या आपके जीवन में यह सब कुछ है? यदि नहीं, तो कमी है श्रेष्ठ
विचारों की तथा उन विचारों को कर्म में परिवर्तित करने की। यदि हम अपने
विचारों को क्रियान्वित रूप में लाते हैं तो निस्संदेह श्री अर्थात समृद्धि
स्वयं हमारे पीछे आएगी। हमें उसके पीछे भागना नहीं पड़ेगा।
भारत में करोड़ों लोग जमीन-जायदाद के झगड़ों में अपना सारा जीवन बिता
देते हैं। अधिकतर झगड़े होते हैं एक ही परिवार के बीच में। उन झगड़ों के
कारण भाई-भाई के बीच में छत्तीस का आंकड़ा हो जाता है। दोनों एक-दूसरे से
नजरें चुराते फिरते हैं। सबसे बड़ा विरोधाभास यह कि वे सोचते हैं, अगर
मुकदमा जीत गए तो रामायण का पाठ करवाएंगे। आखिर वे किस राम की पूजा करते
हैं? उन्हीं की न, जिसने अपना सब कुछ त्याग दिया था?
मान लीजिए, दो भाइयों में जमीन को लेकर अनबन है। दोनो भाई उस जमीन पर
नजर लगाकर बैठे हैं। अब अपने विचारों को जरा ऊंचा उठा कर देखिए। एक भाई के
मन में यह विचार आए कि हे प्रभु! मुझे इतना सक्षम बना कि यह जमीन मैं अपने
भाई को ही दे जाऊं।
उदाहरण के लिए, मैं आपसे 50 रुपये मांगूं और वापस न दूं तो आपके मन की
अवस्था नहीं बिगड़ेगी, क्योंकि जितना आपके पास है, उसकी तुलना में 50 रुपये
कुछ भी नहीं हैं। अर्थात जब आप यह विचार अपने मन ही मन करते हैं कि हे
प्रभु! मुझे इतना सक्षम बना कि यह मकान या जमीन मैं अपने भाई को ही दे जाऊं
तो उस स्थिति में आपका मन शांत एवं प्रसन्न होगा। जब मन शांत होगा, तो
अपने कार्य को दक्षता से करेंगे। कार्य को दक्षता से करने पर घर में
रिद्धि-सिद्धि तो आएगी ही, आपके पास फिर इतनी अधिक समृद्धि आ जाएगी कि वह
जमीन या मकान आपके लिए नगण्य हो जाएगा। सोचिएगा इस बात पर!
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