Friday, March 15, 2013

माखन चोर कहलाता है

एक समय की बात है, जब किशोरी जी को यह पता चला कि कृष्ण पूरे गोकुल में माखन चोर कहलाता है तो उन्हें बहुत बुरा लगा उन्होंने कृष्णा को चोरी छोड़ देने का बहुत आग्रह किया पर जब ठाकुर अपनी माँ की नहीं सुनते तो अपनी प्रियतमा की कहा से सुनते। उन्होंने माखन चोरी की अपनी लीला को उसी प्रकार जारी रखा। एक दिन राधा रानी ठाकुर को सबक सिखाने के लिए उनसे रूठ कर बैठ गयी। अनेक दिन बीत गए पर वो कृष्णा से मिलने नहीं आई। जब कृष्णा उन्हें मानाने गया तो वहां भी उन्होंने बात करने से इनकार कर दिया।
तो अपनी राधा को मानाने के लिए इस लीलाधर को एक लीला सूझी। ब्रज में लील्या गोदने वाली स्त्री को लालिहारण कहा जाता है। तो कृष्ण घूंघट ओढ़ कर एक लालिहारण का भेष बनाकर बरसाने की गलियों में घूमने लगे। जब वो बरसाने की ऊंची अटरिया के नीचे आये
तो आवाज़ देने लगे:
मै दूर गाँव से आई हूँ, देख तुम्हारी ऊंची अटारी दीदार की मई प्यासी हूँ मुझे दर्शन दो वृषभानु दुलारी हाथ जोड़ विनती करूँ, अर्ज ये मान लो हमारी आपकी गलिन में गुहार करूँ, लील्या गुदवा लो प्यारी जब किशोरी जी ने यह करूँ पुकार सुनी तो तुरंत विशाखा सखी को भेजा और उस लालिहारण को बुलाने के लिए कहा। घूंघट में अपने मुह को छिपाते हुए कृष्ण किशोरी जी के सामने पहुंचे और उनका हाथ पकड़ कर बोले कि कहो सुकुमारी तुम्हारे हाथ पे किसका नाम लिखूं। तो किशोरी जी ने उत्तर दिया कि केवल हाथ पर नहीं मुझे तो पूरे श्री अंग पर लील्या गुदवाना है और क्या लिखवाना है, किशोरी जी बता रही हैं:

माथे पे मदन मोहन, पलकों पे पीताम्बर धारी
नासिका पे नटवर, कपोलों पे कृष्ण मुरारी
अधरों पे अच्युत, गर्दन पे गोवर्धन धारी
कानो में केशव और भृकुटी पे भुजा चार धारी
छाती पे चालिया, और कमर पे कन्हैया
जंघाओं पे जनार्दन, उदर पे ऊखल बंधैया
गुदाओं पर ग्वाल, नाभि पे नाग नथैया
बाहों पे लिख बनवारी, हथेली पे हलधर के भैया
नखों पे लिख नारायण, पैरों पे जग पालनहारी
चरणों में चोर माखन का, मन में मोर मुकुट धारी
नैनो में तू गोद दे, नंदनंदन की सूरत प्यारी
और रोम रोम पे मेरे लिखदे, रसिया रणछोर

वो रास बिहारी
जब ठाकुर जी ने सुना कि राधा अपने रोम रोम पे मेरा नाम लिखवाना चाहती है, तो ख़ुशी से बौरा गए प्रभु। उन्हें अपनी सुध न रही, वो भूल गए कि वो एक लालिहारण के वेश में बरसाने के महल में राधा के सामने ही बैठे हैं। वो खड़े होकर जोर जोर से नाचने लगे और उछलने लगे। उनके इस व्यवहार से किशोरी जी को बड़ा आश्चर्य हुआ की इस लालिहारण को क्या हो गया। और तभी उनका घूंघट गिर गया और ललिता सखी ने उनकी सांवरी सूरत का दर्शन हो गया और वो जोर से बोल उठी कि ये तो वही बांके बिहारी ही है। अपने प्रेम के इज़हार पर किशोरी जी बहुत लज्जित हो गयी और अब उनके पास कन्हैया को क्षमा करने के आलावा कोई रास्ता न था। उधर ठाकुर भी किशोरी का अपने प्रति अपार प्रेम जानकार गद्गद हो गए।

मै तो मजाक कर रही थी

एक बार कनहईया को जिदद चढ गई कि मै अपना चित्र बनवाऊँगा, तो कान्हा ने मईया ते कही, मईया मै अपना चित्र बनवाऊँगो, मईया बोली चित्र बनवाई के क्या करेगो, कनहईया बोले, मोते कछू ना पतो मै तो बनवाऊँगो, मईया कनहईया ते एक औरत के पास ले गई जिसका नाम था चित्रा, वो ऐसा चित्र बनाती थी कि कोई पहचान भि ना पावे था कि असली कौन है...
मईया कान्हा को चित्रा के पास लेकर गई और कहा कि कानहा का चित्र बनादो, चित्रा ने कानहा को कभी देखा नही था चित्रा ने कानहा को सिधे खडे होने को कहा लेकिन कानहा टेढे होने के कारण बार बार टेढे ही खडे रहते, कानहा बोले चित्र बनाना है तो ऐसे हि बनाओ.... लेकिन जब चित्रा ने कानहा कि सुरत देखी तो देखती रह गई...
चित्रा का चित कानहा मे ही कही खो गया
मईया कानहा को लेकर चली गई और चित्रा से बोली चित्र बनाकर कल हमारे घर दे जाना
लेकिन चित्रा जब भी कानहा का चित्र बनाती तो रोने लग जाती और सारा चित्र खराब हो जाता... किसी तरह उसने चित्र बनाया और मईया के घर गई
जब मईया ने चित्र देखा तो खूशी के मारे झूम उठी और चित्रा को वचन दिया की ईस चित्र के बदले तू जो माँगेगी मै दुँगी... चित्रा बोली सच मईया.... मईया बोली हाँ जो माँगेगी मै दुँगी... चित्रा बोली तो जिसका चित्र बनाया है वाको ही दे देयो..
मईया ये बात सुन रोने लगी और बोली तु चाहे मेरे प्राण मागँले पर कानहा को नही.... चित्रा बोली मईया तु अपना वचन तोङ रही है... मईया रोते हुए बोली तु कानहा के समान कुछ भि माँगले मै दुँगी... चित्रा बोली तो कानहा के समान जो भी वसतु हो तूम मूझे देदो.... मईया ने घर और बाहर बहुत देखा पर कानहा के समान कुछ ना मिला.... इतने मे कानहा चित्रा को थोङा साईङ मे ले जाकर बोले तु मुझे ले जायेगी तो मेरी माँ मर जायेगी.... चित्रा बोली अगर आप मुझे ना मिले तो मै मर जाउँगी
तब कानहा ने चित्रा को वचन दिया की जब भी तु मुझे याद करेगी मै तेरे सामने आ जाउँगा.... तब चित्रा खुश होकर मईया से बोली मईया मै तो मजाक कर रही थी मुझे तेरा लाला नही चाहिये.... ये सुनकर मईया की जान मे जान आई

Thursday, March 7, 2013

निराकार वैकुंठ पर,

सात लोक तले जिमी के, मृतलोक है तिन पर।
इंद्र रुद्र ब्रह्मा बीचमें, ऊपर विस्नु वैकुंठ घर।।२१
निराकार वैकुंठ पर, तिन पर अक्षर ब्रह्म।
अक्षरातीत ब्रह्म तिन पर, यों कहे ईसे काइलम।।२२
इस पृथ्वीके अधोभागमें सात पाताल हैं. उनके ऊपर मृत्युलोक है. इसके ऊपरके लोकोंमें इन्द्र, रुद्र, ब्रह्मा आदि रहते हैं. इन चौदह लोकोंमें सबसे ऊपर भगवान विष्णुका वैकुण्ठ धाम है. वैकुण्ठसे परे निराकार है. उससे परे अक्षरब्रह्म हैं. उनसे भी परे अक्षरातीत परब्रह्म हैं. इस प्रकार सद्गुरु देवचन्द्रजी प्रदत्त तारतम ज्ञाान स्पष्ट कहता है.

Tuesday, March 5, 2013

વર્ષ ભરમાં ૧ ડજન પારયાનો થી વધારે થાય

 આ થી આપને જાન કરાવતા અમે આનંદનું અનુભવ કરીએછીએ કે   નેપાળમાં ૧૦૮ પારાયણ  બે જગ્યા માં થઇ રહ્યું છે _ એક સીમ્રામાં  અને બીજું  સુર્ખેત માં આ બહુ ખુશીની બાત છે એક વર્ષમાં ૫ કે ૬ ૧૦૮ પારાયાનો થયા કરેછે .હવે આવતા સમયમાં વર્ષ ભરમાં ૧ ડજન
 પારયાનો થી વધારે થાય એવી મારી શુભ ભાવના છે સહુ સુંદર સાથને મારાવતી પ્રણામ .
We are seeking your life to experience the pleasure kariechie that is happening in Nepal _ 108 parayana two spaces in a simramam and another surkheta Baat is very happy after a year 5 or 6 108 parayano medication. Now the time of year throughout 1 dajana
  Parayano more from the mari



 हम हकमें हक हममें


मेरे सब अंगों हक हुकम, बिना हुकम जरा नाहीं।
सोई हुकम हक में, हक बसें अरस में तांहीं।।११
मेरे रोम-रोममें श्रीराजजीका आदेश समाया हुआ है. उनके आदेशके बिना कोई भी क्षेत्र खाली नहीं है. वह आदेश स्वयं श्रीराजजीमें ही है एवं स्वयं वे हमारे हृदयरूपी परमधाममें विराजमान हैं.
हम अरस परस हैं हक के, ए देखो मोमिनों हिसाब।
हम हकमें हक हममें, और हक बिना सब ख्वाब।।१२
हम ब्रह्मआत्माएँ श्रीराजजीकी अङ्ग स्वरूपा हैं एवं स्वयं श्रीराजजी हमारे अङ्गी हैं. हे ब्रह्मआत्माओ ! इस प्रकार हमारे पारस्परिक सम्बन्धोंको समझो. हम स्वयं श्रीराजजीके अङ्गमें हैं एवं स्वयं श्रीराजजी हमारे अङ्ग (हृदय) में विराजमान हैं. वस्तुतः श्रीराजजीके अतिरिक्त अन्य सब स्वप्न मात्र है.
श्री सिनगार.

Sunday, March 3, 2013

आरती


आरती श्री वृषभानुसुता की
  मंजुल मूर्ति मोहन ममता की ।।


Ártí Shrí Vrishbhánusutá kí,
Manjul murti Mohan mamatá kí.


त्रिविध तापयुत संसृति नाशिनि
विमल विवेकविराग विकासिनि ।।


Trividh tápayut sansriti náshini,
Vimal vivekavirág vikásini.


पावन प्रभु पद प्रीति प्रकाशिनि
सुन्दरतम छवि सुन्दरता की ।।


Pávan Prabhu pad príti prakáshini,
Sundaratam Chhavi sundaratá kí.


मुनि मन मोहन मोहन मोहनि
मधुर मनोहर मूरति सोहनि ।।


Muni man Mohan Mohan Mohani,
Madhur manohar múrati sohani.


अविरलप्रेम अमिय रस दोहनि
प्रिय अति सदा सखी ललिता की ।।
Aviralprem amiya ras dohani,
Priya ati sadá sakhí lalitá kí.

संतत सेव्य सत मुनि जनकी
आकर अमित दिव्यगुन गनकी ।।
Santat sevya sat muni janakí,
Ákar amit divyagun ganakí.


आकर्षिणी कृष्ण तन मन की
अति अमूल्य सम्पति समता की ।।


Ákarsiní Krishna tan man kí,
Ati amúlya sampati samatá kí.


कृष्णात्मिका कृष्ण सहचारिणि
चिन्मयवृन्दा विपिन विहारिणि ।।
Krishnátmitká Krishna sahachárini,
Chinmayavrindá vipin vihárini.


जगज्जननि जग दुःखनिवारिणि
 आदि अनादि शक्ति विभुता की
 ऐसा इलम हकें दिया, हुआ इसक चौदे भवन।
मूल डार पात पसरया, नजरों आया सबन।।३५
श्रीराजजीने ऐसा दिव्य ज्ञाान प्रदान किया, जिसके कारण चौदह लोकोंमें सर्वत्र उनका ही प्रेम व्याप्त हुआ दिखाई देने लगा यहाँ तक कि पातालसेलेकर वैकुण्ठ पर्यन्त यह प्रेम इस प्रकार व्याप्त है कि सर्वत्र वही दृष्टिगोचर हो रहा है.
तले सात तबक जिमीय के, या बीच ऊपर आसमान।
मूल वृख पात फूल फैलिया, सब हुआ इसक सुभान।।३६
इस मृत्युलोकके नीचे सात पाताल लोक हैं. इसके ऊपर स्वर्गादि छ लोक हैं. इस प्रकार पातालसे लेकर सत्यलोक पर्यन्त वृक्षके मूलसे लेकर शाखाएँ तथा पत्तोंमें भी सर्वत्र श्रीराजजीका ही प्रेम व्याप्त हुआ है.
singar.