आरती श्री वृषभानुसुता की ।
मंजुल मूर्ति मोहन ममता की ।।
Ártí Shrí Vrishbhánusutá kí,
Manjul murti Mohan mamatá kí.
मंजुल मूर्ति मोहन ममता की ।।
Ártí Shrí Vrishbhánusutá kí,
Manjul murti Mohan mamatá kí.
त्रिविध तापयुत संसृति नाशिनि ।
विमल विवेकविराग विकासिनि ।।
Trividh tápayut sansriti náshini,
Vimal vivekavirág vikásini.
पावन प्रभु पद प्रीति प्रकाशिनि ।
सुन्दरतम छवि सुन्दरता की ।।
Pávan Prabhu pad príti prakáshini,
Sundaratam Chhavi sundaratá kí.
मुनि मन मोहन मोहन मोहनि ।
मधुर मनोहर मूरति सोहनि ।।
Muni man Mohan Mohan Mohani,
Madhur manohar múrati sohani.
अविरलप्रेम अमिय रस दोहनि ।
प्रिय अति सदा सखी ललिता की ।।
Aviralprem amiya ras dohani,
Priya ati sadá sakhí lalitá kí.
Priya ati sadá sakhí lalitá kí.
संतत सेव्य सत मुनि जनकी ।
आकर अमित दिव्यगुन गनकी ।।
Santat sevya sat muni janakí,
Ákar amit divyagun ganakí.
Ákar amit divyagun ganakí.
आकर्षिणी कृष्ण तन मन की ।
अति अमूल्य सम्पति समता की ।।
Ákarsiní Krishna tan man kí,
Ati amúlya sampati samatá kí.
कृष्णात्मिका कृष्ण सहचारिणि ।
चिन्मयवृन्दा विपिन विहारिणि ।।
Krishnátmitká Krishna sahachárini,
Chinmayavrindá vipin vihárini.
Chinmayavrindá vipin vihárini.
जगज्जननि जग दुःखनिवारिणि ।
आदि अनादि शक्ति विभुता की ।
ऐसा इलम हकें दिया, हुआ इसक चौदे भवन।
मूल डार पात पसरया, नजरों आया सबन।।३५
श्रीराजजीने ऐसा दिव्य ज्ञाान प्रदान किया, जिसके कारण चौदह लोकोंमें सर्वत्र उनका ही प्रेम व्याप्त हुआ दिखाई देने लगा यहाँ तक कि पातालसेलेकर वैकुण्ठ पर्यन्त यह प्रेम इस प्रकार व्याप्त है कि सर्वत्र वही दृष्टिगोचर हो रहा है.
तले सात तबक जिमीय के, या बीच ऊपर आसमान।
मूल वृख पात फूल फैलिया, सब हुआ इसक सुभान।।३६
इस मृत्युलोकके नीचे सात पाताल लोक हैं. इसके ऊपर स्वर्गादि छ लोक हैं. इस प्रकार पातालसे लेकर सत्यलोक पर्यन्त वृक्षके मूलसे लेकर शाखाएँ तथा पत्तोंमें भी सर्वत्र श्रीराजजीका ही प्रेम व्याप्त हुआ है.
singar.
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