Saturday, September 29, 2012

श्री किरन्तन

श्री किरन्तन

राग श्री मारू

पेहेले आप पेहेचानो रे साधो, पेहेले आप पेहेचानो ।
बिना आप चीन्हें पार ब्रह्मको, कौन कहे मैं जानो।।१

महामति कहते हैं, हे साधुजन ! सर्व प्रथम स्वयं (आत्मा) को पहचानो, क्योंकि स्वयंको पहचाने बिना कौन कह सकता है कि मैंने परब्रह्म परमात्माको पहचान लिया है.

पीछे ढूंढो घर आपनों, तब कौन ठौर ठेहेरानो।
जब लग घर पावत नहीं अपनों, तोलों भटकत फिरत भरमानो ।।२

यदि शरीर छोड.नेके पश्चात् अपने (आत्माके) मूल घरको ढूँढ.ने लगोगे, तब किस स्थानमें ठहर पाओगे ? क्योंकि जब तक आत्मा अपने मूल घरको प्राप्त नहीं कर लेती, तब तक भ्रममें पड.कर भवसागरमें ही भटकती रहती है.

पांच तत्व मिल मोहोल रच्यो है, सो अंत्रीख क्यों अटकानो ।
याके आसपास अटकाव नहीं, तुम जागके संसे भांनो ।। ३

(पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश इन) पाँचों तत्त्वोंको मिलाकर इस नश्वर ब्रह्माण्डरूपी महलकी रचना की गई है. यह अन्तरिक्षमें कैसे अटक रहा है ? इसके आसपास या ऊपर नीचे कोई सहारा तक नहीं है. हे सज्जन वृन्द ! स्वयं जागृत होकर इस संशयका निवारण करो.

नींद उडाए जब चीन्होंगे आपको, तब जानोगे मोहोल यों रचानो ।
तब आपै घर पाओगे अपनों, देखोगे अलख लखानो ।।४

हे साधुजन ! अज्ञाानरूपी निद्राको दूर कर जब स्वयंको पहचानोगे, तब ज्ञाात होगा कि इस ब्रह्माण्डरूपी महलकी रचना किस प्रकार हुई है ? तब तुम्हें स्वयं अपने मूल घर परमधामकी प्राप्ति (अनुभूति) हो जाएगी तथा पूर्णब्रह्म परमात्मा श्रीराजजीके दर्शन भी होंगे.

बोले चाले पर कोई न पेहेचाने, परखत नहीं परखानो ।
महामत कहें माहें पार खोजोगे, तब जाए आप ओलखानो ।।५

अनेक लोगोंने परमात्माके विषयमें ज्ञाानोपदेश दिया तथा अनेक लोगोंने परमात्माकी प्राप्तिके लिए साधनाएँ भी कीं किन्तु किसीने भी उन्हें नहीं पहचाना. इस प्रकार प्रयत्न करनेपर भी पहचान योग्य परब्रह्म परमात्मा पहचाने नहीं गए. महामति कहते हैं, अन्तर्मुख होकर जब परम तत्त्वको ढूँढ.ोगे, तब आत्मा और परमात्माकी स्वतः पहचान हो जाएगी.


प्रकरण १ चौपाई ५
राग श्री मारू

बिंदमें सिंध समाया रे साधो, बिंदमें सिंध समाया ।
त्रिगुन सरूप खोजत भए विसमए, पर अलख न जाए लखाया ।।१

हे साधुजन ! इस बिन्दुरूपी झूठी मायामें विराट शक्तिशाली सिन्धुरूपी परमात्मा समाया हुआ प्रतीत होता है. सत रज और तम इन तीनों गुणोंके अधिष्ठाता देवता-ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी सिन्धुरूपी परमात्माको खोजते-खोजते चकित हो गए हैं तथापि वे अलख परमात्मा दृष्टिगोचर नहीं हुए.

वेद अगम केहे उलटे पीछे, नेत नेत कर गाया।
खबर न परी बिंद उपज्या कहां थें, ताथें नाम निगम धराया ।।२

वेद भी परब्रह्मकी खोज करनेके उपरान्त उसे अगम्य (पहुँचसे परे) कहकर 'नेति नेति' (अन्त नहीं, अन्त नहीं) कहते हुए उलटे पीछे लौट गये. यह बिन्दुरूपी माया कहाँसे उत्पन्न हुई है, इसकी जानकारी न होनेसे उसका नाम निगम पड.ा.

असत मंडलमें सब कोई भूल्या, पर अखंड किने न बताया ।
नींदका खेल खेलत सब नींदमें, जागके किने न देखाया ।।३

इस असत्य मण्डल (नश्वर ब्रह्माण्ड अर्थात् भवसागर) में सभी लोग अपना मार्ग भूल गए हैं. अखण्ड अविनाशी परमात्माकी बात कोई नहीं करता. यह संसार स्वप्नका खेल है और सभी लोग अज्ञाानकी निद्रामें यहाँ विचरण कर रहे हैं, स्वयं जागृत होकर परमात्माके विषयमें किसीने भी मार्गदर्शन नहीं किया.


सुपनकी सृस्टि वैराट सुपनका, झूठे सांच ढंपाया ।
असत आपे सो क्यों सत को पेखे, इन पर पेड न पाया ।।४

यह विराट ब्रह्माण्ड स्वप्नका बना हुआ है और इसकी समग्र सृष्टि भी स्वप्नकी ही है. इसलिए असत्यके विस्तारसे सत्य ढक गया है. मायावी जीव स्वयं स्वप्नके होनेके कारण सत्य परमात्माको कैसे देख सकते ? इस प्रकार उन्हें परम तत्त्व भी नहीं मिल सका.

खोजी खोजें बाहेर भीतर, ओ अंतर बैठा आप।
सत सुपने को पारथें पेखे, पर सुपना न देखे साख्यात ।।५

परमात्माको ढूँढ.नेवाले लोग इस विश्वमें पिण्ड-शरीरमें अथवा ब्रह्माण्ड (बाहर) में परमात्माको ढूँढ.ते हैं, परन्तु स्वयं परमात्मा तो आत्म स्वरूपसे अन्तरमें विराजमान हैं. सत्य आत्माएँ (ब्रह्मात्माएँ) पार परमधाममें रहकर इस स्वप्नरूपी झूठे संसारको देख रही हैं, परन्तु स्वप्नके जीव उन्हें देख नहीं पाते.

भरमकी बाजी रची विस्तारी, भरमसों भरम भरमाना ।
साध सोई तुम खोजो रे साधो, जिनका पार पयाना ।।६

यह संसारका खेल मात्र भ्रमका विस्तार है. (यहाँ पर) भ्रमके जीव इसी भ्रमरूपी खेलमें भ्रमित हो रहे हैं. इसलिए हे साधुजन ! ऐसे तत्त्वदर्शी सद्गुरुकी खोज करो, जिसने भ्रान्तियोंसे मुक्त होकर पारका मार्ग प्राप्त किया हो.


मृगजलसों जो त्रिषा भाजे, तो गुरु बिना जीव पार पावे ।
अनेक उपाए करे जो कोई, तो बिंदका बिंदमें समावे ।।7

यदि मृगजल द्वारा तृषा शान्त हो सकती हो, तो सद्गुरुके ज्ञाानके बिना भी जीव पार पा सकता है (किन्तु यह तो सम्भव नहीं है). इसलिए कोई अनेक प्रयत्न ही क्यों न कर ले किन्तु बिन्दुरूप मायाके जीव मायामें ही समाहित हो जाते हैं.

देत देखाई बाहेर भीतर, ना भीतर बाहेर भी नाहीं।
गुरु प्रसादे अंतर पेख्या, सो सोभा वरनी न जाई।।८

ब्रह्माण्डमें चौदह लोकोंके अन्दर एवं बाहर जितने भी दृश्यमान पदार्थ हैं, उनमें परमात्मा नहीं है (मात्र परमात्माकी सत्ता है). सद्गुरुकी असीम कृपा द्वारा अन्तरमें उनके दर्शन हुए उनकी यह शोभा अवर्णनीय है.

सतगुरु सोई मिले जब सांचा, तब सिंध बिंद परचावे ।
प्रगट प्रकास करे पारब्रह्मसों, तब बिंद अनेक उडावे ।।९

ऐसे सच्चे सद्गुरु जब मिल जाते हैं, तब वे सिन्धुरूपी पूर्णब्रह्म परमात्मा और बिन्दुरूपी झूठी मायाकी पहचान करा देते हैं और पूर्णब्रह्म परमात्मा का साक्षात् अनुभव (दर्शन) करवाकर बिन्दुरूपी मायाके अनेक प्रपञ्चोंको उड.ा देते हैं.

महामत कहें बिंद बैठे ही उडया, पाया सागर सुख सिंध ।
अक्षरातीत अखंड घर पाया, ए निध पूरव सनमंध।।१०

महामति कहते हैं, सद्गुरुकी कृपा द्वारा अनायास (सहज) ही बिन्दुरूपी झूठी मायाके प्रपञ्च दूर हो गए हैं और सिन्धुरूप पूर्णब्रह्म परमात्माका अपार सुख प्राप्त हो गया. पूर्णब्रह्म परमात्मा अक्षरातीतके अखण्ड घर-परमधामकी प्राप्ति हो गई. यह अखण्ड निधि पूर्व सम्बन्धके कारण ही प्राप्त हुई.

प्रकरण २ चौपाई १५
राग केदारो

साधो भाई चीन्हो, सबद कोई चीन्हो।
ऐसो उतम आकार तोको दीन्हों, जिन प्रगट प्रकास जो किन्हों ।।१

हे साधुजन ! परमात्माकी पहचान करानेवाले शास्त्र वचनोंके रहस्यको समझो (इन शब्दोंका ज्ञाान प्राप्त कर अपनी अन्तरात्माको पहचानो). धामधनीने तुम्हें ऐसा श्रेष्ठ शरीर (मनुष्य देह) दिया है, जिसके द्वारा परमात्माका साक्षात् अनुभव किया जा सकता है.
O seeker! Understand the Reality enmeshed in the words of scriptures. You have got a human form which is the greatest amongst other living beings in which you can see the one who brought the light for us (you can see the Supreme)

मानषे देह अखंड फल पाइए, सो क्यों पाएके वृथा गमाइए।
ए तो अधखिनको अवसर, सो गमावत मांझ नींदर।।२

मनुष्य शरीरके द्वारा ही परब्रह्म परमात्मारूपी अखण्ड फल प्राप्त हो सकता है. ऐसे महामूल्यवान् मानव शरीरको प्राप्त कर उसे क्यों व्यर्थ गँवा रहे हो? यह अवसर तो आधे क्षणके लिए प्राप्त हुआ है, इसे अज्ञाानरूपी निद्रामें पड.कर व्यर्थ गँवा रहे हो.
The human body can achieve the indivisible, imperishable, eternal Supreme Godhead; after receiving such valuable form why do you let it waste for nothing. The opportunity granted at this moment which lasts only a split of a second, why do you waste in sleeping? Wake up Sundarsath and make best use of your time, achieve the love of Lord in this precious birth as a human being, this opportunity is only for few moments.

सबदा कहे प्रगट परवान, सबदा सतगुरसों करावे पेहेचान ।
सतगुरु सोई जो अलख लखावे, अलख लखे बिन आग न जावे ।।३

धर्मशास्त्रोंके (शब्दोंके) द्वारा यथार्थ ज्ञाान प्रकट होता है और वे धर्मशास्त्र ही सद्गुरुकी पहचान भी कराते हैं. जो पूर्णब्रह्म परमात्माकी वास्तविक परख करवाते हैं वे ही सद्गुरु कहलाते हैं. क्योंकि परमात्माकी पहचान हुए बिना अन्तर्दाह (त्रय ताप) नहीं मिटती है.
The words in the Scriptures say can describe Reality and it also guides you how to recognize the true guru. The true guru (satguru) is the one who can reveal the Supreme and without knowing the Supreme Truth the fire burning as the desire can never be extinguished.

सास्त्र ले चले सतगुरु सोई, वानी सकलको एक अरथ होई ।
सब स्यानांेकी एक मत पाई, पर अजान देखे रे जुदाई ।।४

धर्मग्रन्थोंके प्रमाणभूत सिद्धान्तोंके अनुरूप चलने वाले ही सद्गुरु हो सकते हैं. सब धर्मग्रन्थोंकी वाणी समान अर्थ धारण करती है (अर्थात् एक ही पूर्णब्रह्म परमात्माकी ओर संकेत करती है). वास्तवमें सब ज्ञाानीजनोंका अभिप्राय भी एक है, किन्तु धर्मग्रन्थोंके सिद्धान्तोंको न समझने वाले अज्ञाानीजन उनमें भिन्नता देखते हैं.
Remember the true Guru is the one who approves all the scriptures as all the teaching of all the scriptures of all the religions has one and one reality. And all the wise also hold one and only one truth it is the ignorant who see the differences and create conflicts.
Mahamti-Prannathji finds no conflict in any shastra scriptures, holy Quran and Bible. He said they all point to one Lord but they have hidden the Reality so only a true seeker could see. He tried hard to clarify the mysticism in all the shastras but look at Dunis! They have divided tartamsagar into Meherraj says, Indrawati says and Mahamati says and continue their conflict. What does Kuljam Swaroop Mean?

सास्त्रोंमें सबे सुध पाइए, पर सतगुरु बिना क्यों लखाइए ।
सब सास्त्र सबद सीधा कहे, पर ज्यों मेर तिनके आडे रहे ।।५

शास्त्रोंमें परमात्माकी सभी सुधि मिलती है, किन्तु बिना सद्गुरुके उसे किस प्रकार समझा जाए ? सर्वशास्त्रमें परमतत्त्वको समझनेके लिए सीधी और सरल बातें कही हैं परन्तु जिस प्रकार आँखके सामने केवल एक तिनका आ जानेसे पर्वत ढँक जाता है, उसी प्रकार मनमें व्याप्त भ्रान्तियोंसे सत्यज्ञाान छिप जाता है.
The scriptures have all the wisdom to understand the Reality the Supreme Truth but without a true guru how can one understand it. The words of scriptures are actually very straightforward, simple and easy to understand but like a tiny particle in the eyes can prevent a person to see even a huge mountain ahead so does the confusion and wrong perceptions hides the truth.

सो तिनका मिटे सतगुरुके संग, तब पारब्रह्म प्रकासे अखंड ।
सतगुरुजीके चरन पसाए, सबदों बडी मत समझाए।।६

सद्गुरुके समागम द्वारा जब यह भ्रान्तिरूपी तिनका दूर होगा, तभी परब्रह्मका अखण्ड प्रकाश दिखाई देगा. सद्गुरुके चरणोंके प्रताप (कृपा) से ही शास्त्रोंके शब्दोंमें निहित गूढ. रहस्य समझा जा सकता है.
The foreign particle of the eye i.e. the doubts, the confusion in the mind can be easily removed by a true guru and the Absolute, the Whole one that is not divisible, Supreme Lord of the beyond (paar Brahma) will shine upon you. Only with the grace of true Guru the hidden meaning of the words about Reality in scriptures will be revealed to your mind.

तब खोज सबदको लीजे तत्व, तौल देखिए बडी केही मत ।
जासों पाइए प्रानको आधार, सो क्यों सोए गमावे रे गमार ।। 7

इसलिए हे सज्जन वृन्द ! शास्त्रोंमें र्नििदष्ट वचनोंका मन्थन कर उनके तत्त्वज्ञाानको ग्रहण करो. विवेक पूर्वक तुलनात्मक दृष्टिसे देखो कि बड.ी बुद्धि (महामति) कौन हैं ? जिस मानव देह द्वारा प्राणाधार परमात्माकी प्राप्ति होती है, उसे अज्ञाान निद्रामें सोकर मूढ.ोंकी भाँति क्यों गँवा रहे हो ?
When you go through the scriptures measure with your wise mind(not ego) which one is better and the one that leads you to the Supreme and accept that and do not waste your precious opportunity sleeping like an idle idiot.

यामें बडी मतको लीजे सार, सतगुरु याहीं देखावें पार ।
इतहीं वैकुंठ इतहीं सुंन, इतहीं प्रगट पूरन पारब्रह्म।।८

ऐसेमें विवेक बुद्धि द्वारा बड.ी मति वालोंके ज्ञाानका सार ग्रहण करो. सद्गुरु यहीं पर (इसी संसारमें) पूर्णब्रह्म परमात्माके धामका साक्षात्कार कराते हैं. आत्म-जागृति होने पर यहीं वैकुण्ठ तथा शून्यका अनुभव होगा और यहीं पर पूर्णब्रह्म परमात्माका साक्षात्कार भी होगा.
Derive the truth out of the wise words. Take the the advice of wise mind and the true Guru who will be able to show you the beyond living in this world. And you will be able to see the Baikunth, Vacuum(emptiness) and the Supreme shall appear before you over here. (Sorry I could not do justice to Mahamati Prannath ji’s wani)

ए वानी गरजत मांझ संसार, खोजी खोज मिटावे अंधार।
मूढमति न जाने विचार, महामत कहे पुकार पुकार।।९

यह तारतम वाणी इस संसारमें गर्जना कर रही है. खोजनेवाले जिज्ञाासु ही खोजकर अपने हृदयके अज्ञाानरूप अन्धकारको दूर करते हैं. इसलिए महामति प्राणनाथजी पुकार-पुकार कर इसका रहस्य स्पष्ट कर रहे हैं. मूढ लोग इसका मूल्य न समझनेके कारण इस विषयमें विचार नहीं करते.

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