बुध तारतम भेला बन्ने ,तिहां पहेले पधारया श्री राज .
अंग मारे अजवास करी ,साथना सार्या काज .
साथ सकल सिधावियो ,श्री कृष्णाजी संघाते .
ते रमे छे रामत रासनी , आहि उठ्या प्रभाते .
वली जोगामयानुं ब्रह्माण्ड ,कीधो रमवा रास .
रामत रमें श्री राजसुं,साथ सकल उलास .(प्र गु 31/24)
नवला रंग पशु पंखी ,वनमें करे टहूँकार .
नवला सुख श्री राजासुं ,साथ लिए रे अपार .(31\97 )
ए बात अमे श्री राजने कही ,त्यारे अम ऊपर इच्छा थई .
उपनो मोह सूरत संचरी,तेने मोह माया रचना करी .(प्र गु 37\6 )
ब्रह्माण्ड माहें आवियो एह ,मनतना भाजवा संदेह .
साथ माहे एक सुन्दरबाई ,तेने श्री राजे दीधी बडाई .(37\19)
श्री राज पधार्या पछी ,व्रज वधू मथुरा ना गई।
कुमारका संग रमत मिसे ,दान लीला एम थई।।(कगु 8\34)
दूध दधी माखन लावूं ,अमे वालाजीने काज .
ते दधी झुंटी अम तनु ,दिए गोवालाने राज (कगु 8\37)
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