भागवत श्रवण और श्री कृष्ण दर्शन:-
नवानगर
(जामनगर) में श्री श्याम सुन्दरजीके मंदिरमें प्रकाण्ड विद्वान श्री कांजी
भट्ट श्रीमद्भागवतकी कथा सुनाया करते थे, श्रीदेवचंद्रजी महाराज भी
श्रीमद्भागवतकी कथा श्रवण करने जाने लगे, इस प्रकार चौदह वर्षों तक
निष्ठापूर्वक वे श्रीमद्भागवतकी कथा सुनते रहे, इस अवधिमें अनेक शारीरिक
विघ्न-बाधायें (रोग-शोक आदि) आने पर भी इनका नित्य नियम नहीं टूटा, वे
कथामें सबसे पहले आते और सबके बाद घर जाते थे, निष्ठा पूर्वक किये गये उनके
नित्य- नियमने परब्रह्म श्रीकृष्ण परमात्माको भी प्रत्यक्ष होने के लिए
विवश कर दिया, जब श्रीमद्भागवत श्रवणका चौदहवाँ वर्ष पूरा हो रहा था, तब
विक्रम संवत १६३८ आश्विन कृष्ण चतुर्दशीके दिन श्रीकृष्ण परमात्मा
(श्रीराजजी) ने साक्षात दर्शन देकर श्रीतारतम महामंत्र प्रदान किया और कहा-
हे
देवचन्द्र ! तुम दिव्य परमधमकी आत्मा हो, तुम्हारा नाम सुन्दरबाई है,
परमधाममें तुम्हारी जैसी आत्माओंने दुःख रूप खेल (संसार) देखनेकी इच्छा की
थी, तब मैंने तुम सबको इस नश्वर संसारमें भेजा, ये सब आत्माएं नर-नारीके
रूपमें इस नश्वर जगतमें आई हुई हैं, अब वे सभी आत्माएं स्वयंको यहींकी
(इसीलोककी) समझने लगी हैं, हमारा घर-मकान यही है, अब तुम उन सब आत्माओंको
इस तारतम ज्ञान द्वारा जाग्रत करके उस सुदिव्य परमधाममें ले आओ, इस तरह
देवचन्द्रजीको आत्मज्ञान कराकर, उन्हें पाताल से परमधामका सम्पूर्ण परिचय
करवाते हुए आत्म जागृतिके लिए तारतम ज्ञानका रहस्य समझाकर पूर्णब्रह्म
परमात्मा श्री कृष्णजी अंतर्ध्यान हो गये । प्रनामजी
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