Tuesday, February 12, 2013

आस्था का प्रतीक है महाकुंभ

सनातन धर्म और आस्था का दुनिया का सबसे बड़ा संगम है प्रयाग महाकुंभ। कुंभ अर्थात् संचय करना। कुंभ का कार्य है सभी को अपने में समाहित कर लेना, नानत्व को एकत्व में ढाल देना, जो ऊबड़-खाबड़ है उसको भी आत्मसात कर आकार दे देना। घट में अवघट का अस्तित्व विलीन हो जाये तब घट अर्थात कुंभ की सार्थकता है। लोक हमेशा अमृत के कुंभ की स्मृति रखता है। हमारे विचार, हजारों पदार्थ, इस कुंभ में समाकर अमर हो जाते हैं।
यह कुंभ नहीं महाकुंभ है। यह देश का महाकुंभ है। हमारी अस्मिता का महाकुंभ है। संस्कृति का महाकुंभ है। सनातन धर्म का महाकुंभ है। एक घट में सर्वस्व समाहित है। देव और दानवों के मंथन के दौरान समुद्र से निकले अमृत कुंभ की रक्षा सूर्य, चन्द्र, गुरू और शनि के विशेष प्रयासों से हुई थी। चन्द्रमा ने कुंभ को गिरने से, सूर्य ने फूटने से, वृहस्पति ने दैत्यों से तथा शनि ने इन्द्रपुत जयंत के भय से रक्षा की थी। अमृत कलश से बिन्दु पतन के दौरान जिन राशियों में सूर्य, चन्द्रमा, गुरु, और शनि की स्थिति थी उन्हीं राशियों में इनके होने पर कुंभ होता है। सूर्य चन्द्र के मकर राशि में तथा चन्द्रमा के साथ गुरू वृष राशि में बारह वर्ष बाद आता है। यह कुंभ प्रयाग में पड़ता है। शनि का योग महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि हजार अश्‌र्र्वमेध यज्ञ तथा सौ वाजपेय यज्ञ करने तथा लाख बार भूमि की प्रदक्षिणा करने कार्तिक में हजार बार स्नान करने माघ में सौ बार स्नान करने तथा बैशाख में करोड़ बार नर्मदा में स्नान करने का जो महाफल प्राप्त होता है वह महाकुंभ में एक बार स्नान मात्र से ही प्राप्त हो जाता है। कहा जाता है कि अमावस्या वह दिन है जब चन्द्रदेव पृथ्वी पर उतरते हैं तब पौधों, वृक्षों तथा औषधियों में वास करते हैं। सूर्यदेव मकर राशि में संक्त्रमित होकर गंगा यमुना सरस्वती के अमूल्य नीर निधि में प्राणदा शक्ति का संचार करते हैं। इसी जीवनदायिनी ऊर्जा की लालसा में असंख्य श्रद्धालु कुंभ के अवसर पर उमड़ पड़ते हैं। यह अलग बात है कि जीवनदायिनी मां गंगा के स्वयं के जीवन पर संकट मंडरा रहा है। सम्राट हर्षवर्द्धन के समय प्रयाग के संगम क्षेत्र में प्रत्येक पांचवें वर्ष एक समारोह का आयोजन होता था जिसे महामोक्ष परिषद् कहा गया है। ेनसांग स्वयं छठे समारोह में आया था। उसने लिखा हे कि इसमें 18 अधीन देशों के राजा सम्मिलित हुए थे। यह समारोह लगभग ढाई महीने तक चला। सम्राट ने बारी बारी से महात्मा बुद्ध भगवान सूर्य तथा शिव प्रतिमाओं की पूजा की थी। प्रयाग के इस धार्मिक समारोह के अवसर पर वह गरीबों में दान भी किया करता था। यहां तक कि व्यक्तिगत आभूषणों तक को दान कर देता था। महाकुंभ की शुरुआत कब से हुई यह शोध का विषय है। इस पर तर्क वितर्क हो सकते हैं लेकिन यह महाउत्सव शाश्वत रूप से चलता रहेगा यह सुनिश्चित है। इस महाकुंभ के हम साक्षी हैं। आने वाले का कोई और बनेगा। भारत के महामुंभ में नवीन विचारों के आगमन का सिलसिला नदियों की धारा के साथ प्रवाहमान होता रहेगा। नये नये दर्शनों से महाकुंभ भरता रहेग। यह आस्था है जो व्यक्ति को व्यक्ति के निकट लाती है। यह उत्सव है जो व्यक्ति को समाज से जोड़ता है।
कुंभ केवल मेला मात्र नही है बल्कि भारतीय जनमानस की आस्था का प्रतीक है। संगम के इस महासमागम में संपूर्ण भारत का दृश्य मौजूद है। कोई किसी से नहीं पूछने वाला किस प्रदेश जाति के हैं। समूचे भारत का रीति रिवाज खान पान रहन सहन वेशभूषा इस महाकुंभ में घुलकर भारतीय संस्कृति का दर्शन पेश कर रही है। महंगाई की मार झेलती श्रद्धालुओं का उत्साह ठण्डा नहीं है। संगम का अर्थ केवल नदियों का समागम नहीं यह विविध संस्कृतियों का समागम संस्कारों का समागम विभिन्न आश्रमों का समागम, धर्म अर्थ मोक्ष का समागम देश और विदेश का समागम है।

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